-->
  सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण को मानवीय फैंसलो के लिए याद किया जाएगा

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण को मानवीय फैंसलो के लिए याद किया जाएगा



जनी वर्मा 

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्‍ताओं की पसंद कहे जाने वाले जस्टिस अशोक भूषण आज से दिखाई नहीं देगें. अपने रिटायरमेंट के दिन से चार दिन पहले ही उन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट को अलविदा कह दिया. सुप्रीम अदालत में 20 जून उनका आखिरी दिन था. अशोक भूषण को वकीलों के पसंदीदा जज के रूप तौर पर जाना जाता था और वे अयोध्या विवाद पर पांच जजों की बेंच की तरफ से उन्‍होंने ही दिए गए फैसले का परिशिष्ट लिखा था.

सेवानिवृत्ति से चार दिन पहले क्यों ले ली छुट्टी?

जस्टिस अशोक भूषण की मां का नौ दिन पहले देहांत हो गया था. अपनी मां के श्राद्ध कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए रिटायरमेंट से चार दिन पहले ही उन्‍होंने छुट्टी ले ली. जस्टिस भूषण युवा वकीलों के प्रति दोस्ताना रवैया रखते थे और उनका उत्साह बढ़ाने की कोशिशें करते देखे जाते थे. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिस केस में जब पांच जजों की बेंच के सर्वसम्मत फैसला लिया तो उसके 116 पन्नों का परिशिष्ट भूषण ने ही लिखा था.

अनोखे व्‍यक्तित्‍व के स्‍वामी थे जसिटस भूषण

सुप्रीम कोर्ट के वकीलों से लेकर आम आदमी के बीच जस्टिस भूषण को उनके सौम्य एवं मृदुभाषी स्‍वभाव वाले जज के रूप में जानता था. मगर जब भी समाज के पिछड़े और वंचित तबके की बात आती थी तो वे इन तबकों के पक्ष में बेलाग लपेट कठोर शब्दों का इस्तेमाल करने से कभी नहीं हिचकते थे. जिस दिन उन्‍होने सुप्रीम कोर्ट में अपना अंतिम दिन बिताया उस दिन भी अपने आखिरी फैसले में उन्होंने अपने उसी व्‍यक्तित्‍व की छाप छोड़ी। उन्‍होंने कोरोना महामारी से जान गंवाने वालों के परिवार वालों को देने के एक मामले में जस्टिस एम आर शाह के साथ फैसला दिया कि सरकार अपने संवैधानिक दायित्व से नहीं बच नहीं सकती. उन्‍होंने सरकार से कहा कि उसे मृतकों के परिजनों को मुआवजा देना ही होगा.  भले ही वो रकम कुछ भी हो. उनकी बेच ने कहा कि मुआवजे की रकम भले ही कुछ भी हो  लेकिन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण मुआवजे की उचित रकम तय करके गाइडलाइंस बनानी ही होगी.


पलायन करते मजदूरों पर भी दिया था फैसला

कोरोना की पहली लहर में लगे देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद जब देश के कई महानगरों से मजदूरों पलायन कर रहे थे तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. तब भी जस्टिस भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार को कड़े निर्देश देते हुए पैदल चल पड़े लाखों मजदूरों के लिए आश्रय, भोजन और राशन का प्रबंध करने के आदेश दिए थे. तब बेंच ने सरकार को पलायन के लिए मजबूर मजदूरों के लिए कम्यूनिटी किचन चलाने के आदेश दिए थे.

वकीलों और मजलूमों के बीच इसलिए याद किए जाएंगे जस्टिस भूषण

जसिटस भूषण की बेंच ने ही एयरलाइंस कंपनियों को लॉकडाउन में कैंसल फ्लाइट्स के टिकटों का पैसा वापस करने का निर्देश दिया था. उन्हीं की बेंच ने सरकार और रिजर्व बैंक को कोविड काल में मजबूर किया कि वो बैंकों को लोन ईएमआई नहीं चुका पाने वालों से ब्याज नहीं वसूले.  उन्‍हीं की अध्यक्षता वाली बेंच ने सामाजिक कल्याण योजनाओं का फायदा उठाने के लिए असंगठित क्षेत्र के सभी 38 करोड़ कामगारों का रजिस्ट्रेशन करने में हीला-हवाली पर सरकार की जबर्दस्त खिचांई की थी.

यूपी से है भूषण का वास्‍ता

जस्टिस अशोक भूषण उत्तर प्रदेश के जौनपुर में जन्‍में  हैं. 65 साल के भूषण 23 की उम्र में 1979 में लीगल प्रोफेशन से जुड़े और 2001 में इलहाबाद हाई कोर्ट के जज नियुक्त हुए. 13 मई  2016 को उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में हुई. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कुल 5 वर्ष दो महीने की सेवा दी. चीफ जस्टिस एनवी रमन ने विदाई के मौके पर जस्टिस भूषण को शानदार व्यक्तित्व का धनी बताते हुए कहा, 'जस्टिस भूषण ने कल्याणकारी और मानवीय पहलुओं के दम पर न्याय व्यवस्था का मान बढ़ाया है.'

0 Response to " सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण को मानवीय फैंसलो के लिए याद किया जाएगा"

एक टिप्पणी भेजें

Ads on article

Advertise in articles 1

advertising articles 2

Advertise under the article